Sunday 22 December 2013

वर...

जो जंगल, बड़ा खुश था उस दिन उसकी आत्महत्या पर, आज उस से परेशान होकर अपने दावानल की प्रार्थना करने गया है...||  उसने इष्ट को बताया वो तितली जिसने तुम्हारे अस्तित्व पर सवाल उठाये थे... उस पर तुमने नाराज होकर उसे मछली होने का शाप क्यों दिया... शापित मछली ने समंदर को लील लिया और फिर अपने ही तेइसवें जन्मदिन पर उसने आत्महत्या कर ली... उसकी अतृप्त आत्मा ने एक नयी कोख में शरण ली.... उसकी माँ, अवैध समाज  में रहने वाली एक कॉलेजी छात्रा थी... और अवैध काहे जाने वाले प्रेम सम्बनधो की परिणति थी उसकी कोख में ठहरा हुआ एक क्षण | वो तितली... नही ..  वो मछली... नही इष्ट! वो शापित आत्मा... बहुत घबराई... और एक बार फिर उसने आत्महत्या कर ली अपनी कुंवारी माँ की कोख में.... उसकी माँ ने अपने कोख बचे उसके कुछ चीथड़े जंगले द्वार पर आकर दफना दिए थे प्रभु.... वो हर रात जिन्दा होकर चीत्कार करते  हैं.... इसीलिए मैं विनती लेकर आया... मुझे दावानल का ... अथवा उसे बर्फ होने का वर दो... || जंगल की बात सुनकर ईश्वर नमक जीव सिहर गया... उसने जंगल को इंतजार करने का कह कर अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया | जंगल के बाहर लोगो ने इश्वर का नया मंदिर बनवा दिया है... जंगल ठहरा इंतजार कर रहा है... समंदर भी सावन के साथ आकर बीच बीच में दस्तक दे जाता है ||

....... पर सहमे हुए इस जीव ने सदियों बाद भी अपना दरवाजा नही खोला |||



Tuesday 30 July 2013

ख्वाहिश

हमारी घुलती हुई आवाजें सुनकर
 बौखलाई बारिशें नही चाहती 
कि मैं आ सकूं तुम तक 
नजराने लिए मेंहदी के सब्ज पत्तो के 
अपनी उँगलियों के पोरों पर 
कई बार 
खुशबुएँ हलकान किये होती हैं मुझे 
बाएं कान के नीचे 
उस पनीले रंग के चुम्बन की 
तब मैं छिप जाना चाहती हूँ 
तुम्हारे बाजुओं में
अपने सपनों की कसीदाकारी करने को 
पर 
ये बारिशें
हर बार 
बना देती हैं नया आबशार 
साजिशों का 
जो झरता है 
तुम्हारे इश्क की ऊंचाइयों से 
कितनी काई जमा हैं 
इन ऊंचे पत्थरो पर 
मन के शोर सा आता है 
पानी 
हाहाकार करते हुए  
फिर नही 
टिक पाते 
मेरे सूने पैर 
और मैं छिटककर 
चूर चूर हो जाती हूँ
फिर भी नही बन पाती 
इस लायक 
कि 
कम से कम 
तुम्हारी मछलियाँ खा सके मुझे...................

Friday 28 June 2013

मनाही...

मेरा दिल 

हथेली पर लेकर , रखने की कोशिश मत करना ...

बड़ी चटकनें  हैं... 

चुभ जाएँगी !

तुम्हारी उँगलियों में...

फिर तुम भी झटककर...

दूर फेंक दोगे इसे ...

एक अभिशप्त ताबीज की तरह...



सवाल..?

सुनो! मैं चाहती हूँ,इस बार,जल्दी आये,बारिश,और मैं,अपने धारे छोड़,बेवक्त, मिल जाऊँ तुममे,भुलाकर,समांतर होने की शर्तें,मैं आ सकूँ,उस किनारे,तुम तक,और बहूं,दूर तक,कहो, आऊँ न?





चूड़ियाँ... :o

तेरे लिए... 
कि अब तू सो सके...
भर नींद... 

भोर होते ही...
नही सतायेंगी वो तुझे... 
न शोर मचायेंगी... 

न खनखनायेंगी... 
तू सो सके बेखलल... 
इसलिए बदल दिया मैने... 

खुद को संवारने का ढंग... 
ले आयी हूँ मैं...
प्लास्टिक की चूड़ियाँ...

विमायें....

फिर कदम...उन्ही रास्तों पर...स्याह सुरंग के बाद... फिर... आस प्याली भर असली चाँदनी की... नकली दुनिया में... मुलम्मे चढ़े चेहरे... बातें सच्ची, नाते झूठे... फिर भी स्वागत तुम्हारा... तलाश की नयी विमा में ।

Wednesday 15 May 2013

पहुँच...



चेहरों को टटोल कर देखना चाहती मैं... और उसके लिये  किसी के पास तक जाना होगा... किसी और तक पहुचने के लिए... उसे पाने तक आने का रास्ता देना होगा... और रास्ता देने का मतलब... खोलने होंगे दिल के दरवाजे... हैंडल हाथो में हैं... पर खींचने के लिए चाहिए हिम्मत... और हिम्मत हार जाती हूँ मैं... तुम्हारे बिना... हाँ... तुम्हारे बिन तुम तक ही नही पहुच सकती.......

Thursday 25 April 2013

रंग धूप के


मेरा नाम का भी तो कोई रंग होगा...न न...गहरे रंग नही फबते मुझ पर....हलके ही चाहिए...

मगर...हलके रंग कच्चे होते हैं...उड़ जाते हैं...जरा देर धूप में रख दो तो....फिर...सोचती हूँ...अब की बार...धूप को ही आजमाऊ....कई शेड में मिल जाएगी न....पर्स की पिछली जेब में सहेज कर रख लुंगी....और...जब उदासी घेरेगी....थोडा सा धूप  का रंग मल दूंगी....चेहरे पर...मगर...सोचती हूँ ...दिन ढलने के बाद क्या होगा...

18/03/13 








      

Sunday 17 March 2013

रास्ते




मैंने सोचा
मैं मंजिल को जाती हूँ
फिर सोचा, नही;
मैं रास्तो से जाती हूँ
किसी ने कहा
दूरी है, वेग चाहिए
किसी ने कहा
पास ही
मंथर ही चल
मगर, जो समझा 
तो चौंक पड़ी
मंजिल दूर नही कि
चलने से मिल जाये
बेवजह दौड़ लगाई  मैंने
हा!
साँसे उखड़ने लगी थी
अब तो
और
अब तक
मेरे भीतर
ठहरी
मेरे चलने से चूक गयी
मंजिल
जब ठहर गई
तो पा लिया |   


Monday 4 March 2013

Mobile


तुम्हारे लिए

रिचार्ज रखती हूँ अपना मोबाइल 
तमाम टैरिफ और टॉपअप के साथ 
और बार बार खोलकर फोनबुक 
तुम्हारा नाम और नम्बर 
करती हूँ तस्दीक 



तो 
कभी काल हिस्ट्री में जाकर 
झांक लेती हूँ 
कितने पल लिखे थे 
तुमने मेरे नाम पिछली दफा 
और 
समेट कर छिपा लेती हूँ 
कि
कहीं डिलीट बटन न दब जाय
गलती से 
और 
ख़तम हो जाएँ हमारी 
प्यारी बातो के लम्हे

न न ऐसा नही है 
डायल भी किया है कई बार 
मगर 
रिंग जाने से पहले ही 
धड़कने हो जाती हैं बेकाबू 
और 
सिहर कर 
दबा देती हूँ 
डिसकनेक्ट का बटन 
और खींच लती हु बार बार खुद को दूर तुमसे 
जिससे इत्मिनान से 
अपनी साँसों में 
महसूस कर सकू तुम्हे.........................

Sunday 24 February 2013

मुस्कुराहटें :)

मुस्कुराहटें 

और

 कुमुदनियाँ 

जो थमाई थी 

तूने 

गिरीं 

और 

गिरकर,

चटककर, 

टूटकरचूर

 चूर हो गयीं......... 






मैं...


जानती हूँ 
मेरी भंगिमाएं 
डरा देती हैं तुम्हारी रवायतो को 
मैं शालीनता से 
चाय लाने वाली 
गूंगी गुडिया नही हूँ 
ये बात जितनी जल्दी समझ लो
आसानी होगी तुम्हे 
...
...
...
मैं वो नही 
जो तुमने
मुझे 
समझा 
तुम्हारी इंच इंच आबरू
मेरी संभावनाओं की 
तिपाई पर रखी है 
बेफिक्र रहो
कुछ नही होगा उन्हें 
भरोसा कर सकते हो 
मुझ पर
...
...
...
मैंने तो अलगनी से 
दुपट्टा निकलना चाहा था 
संग पूरा आसमान आ गया 
अब 
इसपे हक़ है मेरा 
इसपे अधिकार मेरा 
क्यों की यर मेरे हिस्से का है 
हाँ 
नही सुना क्या ?
ये मेरे हिस्से का है 
...
...
...
पर सुनो
सराहना वाली 
एक मुस्कराहट
अगर दे सको तो, 
तुम्हे बताऊ मैं 
की 
जब से मिला हैं आसमान,
मेरे हिस्से का,
उसे कई तरह से आजमाया मैंने 
ओढा; बिछाया 
और 
कई बार लहराया मैंने 
...
...
...
तुम्हे बताऊँ मैं
जब से पाया 
ये आसमान 
सारी हसरते 
सिफर मेरी 
और लहरे उस आसमान की 
मेरे चेहरे पर 
बारिश की मानिंद 
बूँद बूँद पड़ती हैं 
और छोड़ जाती हैं 
अपना  सीलापन 
...
...
...
मगर मेरे आसमान का एक छोर 
मैंने थम रखा है
अपनी उंगलियों के बीच 
मजबूत पकड़ है मेरी, 
न छूट सकने वाली 
...
...
...
बिना होली बिखरे हैं रंग
मेरे मन के कैनवास पर 
रंगीन मैं 
रंगोली मैं 
रंग भी मैं 
अपने ही रंग मेरे 
अमलताश होती मैं 
पलाश होती मैं 
रंग सुगंध 
राग पराग 
पाती सन्देश 
दुपट्टा 
और 
आसमान  थामे 
समय के आँगन 
में उडती तितली सी 
मैं 
एक लड़की मैं.... ... ...


Friday 1 February 2013

व्यापार


हम आग बेचने निकले हैं...
बोलो खरीदोगे???
जहर बुझा गुस्सा...
बंधा है पोटली में....
नफरते तोला भर....
बोलो खरीदोगे???

सारे ताम झाम छोड़ के...
तिनका तिनका चिनगारिया....
बटोरी हैं,
हाँ मोल भाव तुम मत करना...
बेपरवाह हैं हम....
नही भी बेचेंगे...
छटांक भर जिन्दगी.... 
लिए बिना....

बोलो खरीदोगे ??? 
नही न?

Friday 25 January 2013

कोशिश...


ओह माँ !!!
हमें माफ़ करना 
हमने धारणा से
संकल्प पैदा करना चाहा
हमने अवमानना से 
समर्पण पैदा करना चाहा
हम हिन्दू बने रहे 
हम मुसलमान बने रहे 
हम जैन बने रहे


हम बंटते रहे 
और
लुटते रहे 
और
चूक होती गयी
हम से 
तेरी साज सम्हाल में
अचानक
तेरी पुकार
सुन 
हम भागे.... हम भागे आये हैं 
हमे समेत ले 
अपने अंक में 
हम सारे विशेषण 
छोड़ आये हैं
निर्वसन , निर्धारणा 
अब हमेमिटना है
खोना है 
तुझमे ही समाहित होना है 
अब हमे "आम आदमी " होना है.....

"तो ???"


' तो ? ' ये तेरा सवाल है 
तेरे पास होंगे कारण 
तेरे पास होंगी वजहें कई 
तेरी वजहों में, तेरो बातो में 
बड़ी आतुरता है 
हैं बड़ी जल्दबाजी
और बेचैनी 
चेष्टाएं 
दौड़ धूप 
बस अगर कुछ नही है तो 
वो है समझ 
 
हाँ ! मान ले नही है
तुझमे समझ 
ये 
समझने की 
की कुछ चीजे
हाथ से नही
प्रतीक्षा से मिलती हैं 
तूने दिया जो
निमंत्रण
स्वीकारेगा 
आवेगा अतिथि 
रखना खुले द्वार.....

Tuesday 22 January 2013

सपनीले


सुनो प्रिय 
अब भी मै इकट्ठे करती हूँ लजीले किसलय 
अब भी मेरी आदत फूलो को सहलाने की 
रेत से ढूंढ लाये थे जो 
तुम
सपनीले सफ़ेद पत्थर 
अब भी बाँध रखे हैं मैंने दुपट्टे
 के कोने से 


मौन के गाँव....!!!


अब के जब....
लौट के आओगे तुम....
हाथ थामे तुम्हारा....
चलेंगे...
छिप कर सबसे...
बाजार के...
पीछे वाली गली से....
ढलान वाली सड़क से उतरकर....
ढूंढेंगे नया इक गाँव....
सुनो वो जंगल के चरमराते पत्ते....
बता सकते हैं हमे आगे जाने का रास्ता....
जहा से लौट पड़े थे हम पिछली दफा .....
झुरमुटो से निकल कर.....
उधर टीलों की बस्ती.... आगे ही मिलेगा ....
मौन का गाँव....
जहा गीत रहता है.....
ले चलोगे न?