Sunday 24 February 2013
मैं...
जानती हूँ
मेरी भंगिमाएं
डरा देती हैं तुम्हारी रवायतो को
मैं शालीनता से
चाय लाने वाली
गूंगी गुडिया नही हूँ
ये बात जितनी जल्दी समझ लो
आसानी होगी तुम्हे
...
...
...
मैं वो नही
जो तुमने
मुझे
समझा
तुम्हारी इंच इंच आबरू
मेरी संभावनाओं की
तिपाई पर रखी है
बेफिक्र रहो
कुछ नही होगा उन्हें
भरोसा कर सकते हो
मुझ पर
...
...
...
मैंने तो अलगनी से
दुपट्टा निकलना चाहा था
संग पूरा आसमान आ गया
अब
इसपे हक़ है मेरा
इसपे अधिकार मेरा
क्यों की यर मेरे हिस्से का है
हाँ
नही सुना क्या ?
ये मेरे हिस्से का है
...
...
...
पर सुनो
सराहना वाली
एक मुस्कराहट
अगर दे सको तो,
तुम्हे बताऊ मैं
की
जब से मिला हैं आसमान,
मेरे हिस्से का,
उसे कई तरह से आजमाया मैंने
ओढा; बिछाया
और
कई बार लहराया मैंने
...
...
...
तुम्हे बताऊँ मैं
जब से पाया
ये आसमान
सारी हसरते
सिफर मेरी
और लहरे उस आसमान की
मेरे चेहरे पर
बारिश की मानिंद
बूँद बूँद पड़ती हैं
और छोड़ जाती हैं
अपना सीलापन
...
...
...
मगर मेरे आसमान का एक छोर
मैंने थम रखा है
अपनी उंगलियों के बीच
मजबूत पकड़ है मेरी,
न छूट सकने वाली
...
...
...
बिना होली बिखरे हैं रंग
मेरे मन के कैनवास पर
रंगीन मैं
रंगोली मैं
रंग भी मैं
अपने ही रंग मेरे
अमलताश होती मैं
पलाश होती मैं
रंग सुगंध
राग पराग
पाती सन्देश
दुपट्टा
और
आसमान थामे
समय के आँगन
में उडती तितली सी
मैं
एक लड़की मैं.... ... ...
Friday 1 February 2013
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