Sunday 17 March 2013

रास्ते




मैंने सोचा
मैं मंजिल को जाती हूँ
फिर सोचा, नही;
मैं रास्तो से जाती हूँ
किसी ने कहा
दूरी है, वेग चाहिए
किसी ने कहा
पास ही
मंथर ही चल
मगर, जो समझा 
तो चौंक पड़ी
मंजिल दूर नही कि
चलने से मिल जाये
बेवजह दौड़ लगाई  मैंने
हा!
साँसे उखड़ने लगी थी
अब तो
और
अब तक
मेरे भीतर
ठहरी
मेरे चलने से चूक गयी
मंजिल
जब ठहर गई
तो पा लिया |   


Monday 4 March 2013

Mobile


तुम्हारे लिए

रिचार्ज रखती हूँ अपना मोबाइल 
तमाम टैरिफ और टॉपअप के साथ 
और बार बार खोलकर फोनबुक 
तुम्हारा नाम और नम्बर 
करती हूँ तस्दीक 



तो 
कभी काल हिस्ट्री में जाकर 
झांक लेती हूँ 
कितने पल लिखे थे 
तुमने मेरे नाम पिछली दफा 
और 
समेट कर छिपा लेती हूँ 
कि
कहीं डिलीट बटन न दब जाय
गलती से 
और 
ख़तम हो जाएँ हमारी 
प्यारी बातो के लम्हे

न न ऐसा नही है 
डायल भी किया है कई बार 
मगर 
रिंग जाने से पहले ही 
धड़कने हो जाती हैं बेकाबू 
और 
सिहर कर 
दबा देती हूँ 
डिसकनेक्ट का बटन 
और खींच लती हु बार बार खुद को दूर तुमसे 
जिससे इत्मिनान से 
अपनी साँसों में 
महसूस कर सकू तुम्हे.........................