मैंने सोचा
मैं मंजिल को जाती हूँ
फिर सोचा, नही;
मैं रास्तो से जाती हूँ
किसी ने कहा
दूरी है, वेग चाहिए
किसी ने कहा
पास ही
मंथर ही चल
मगर, जो समझा
तो चौंक पड़ी
मंजिल दूर नही कि
चलने से मिल जाये
बेवजह दौड़ लगाई मैंने
हा!
साँसे उखड़ने लगी थी
अब तो
और
अब तक
मेरे भीतर
ठहरी
मेरे चलने से चूक गयी
मंजिल
जब ठहर गई
तो पा लिया |