Friday 28 June 2013

मनाही...

मेरा दिल 

हथेली पर लेकर , रखने की कोशिश मत करना ...

बड़ी चटकनें  हैं... 

चुभ जाएँगी !

तुम्हारी उँगलियों में...

फिर तुम भी झटककर...

दूर फेंक दोगे इसे ...

एक अभिशप्त ताबीज की तरह...



सवाल..?

सुनो! मैं चाहती हूँ,इस बार,जल्दी आये,बारिश,और मैं,अपने धारे छोड़,बेवक्त, मिल जाऊँ तुममे,भुलाकर,समांतर होने की शर्तें,मैं आ सकूँ,उस किनारे,तुम तक,और बहूं,दूर तक,कहो, आऊँ न?





चूड़ियाँ... :o

तेरे लिए... 
कि अब तू सो सके...
भर नींद... 

भोर होते ही...
नही सतायेंगी वो तुझे... 
न शोर मचायेंगी... 

न खनखनायेंगी... 
तू सो सके बेखलल... 
इसलिए बदल दिया मैने... 

खुद को संवारने का ढंग... 
ले आयी हूँ मैं...
प्लास्टिक की चूड़ियाँ...

विमायें....

फिर कदम...उन्ही रास्तों पर...स्याह सुरंग के बाद... फिर... आस प्याली भर असली चाँदनी की... नकली दुनिया में... मुलम्मे चढ़े चेहरे... बातें सच्ची, नाते झूठे... फिर भी स्वागत तुम्हारा... तलाश की नयी विमा में ।