ओह माँ !!!
हमें माफ़ करना
हमने धारणा से
संकल्प पैदा करना चाहा
हमने अवमानना से
समर्पण पैदा करना चाहा
हम हिन्दू बने रहे
हम मुसलमान बने रहे
हम जैन बने रहे
हम बंटते रहे
और
लुटते रहे
और
चूक होती गयी
हम से
तेरी साज सम्हाल में
अचानक
तेरी पुकार
सुन
हम भागे.... हम भागे आये हैं
हमे समेत ले
अपने अंक में
हम सारे विशेषण
छोड़ आये हैं
निर्वसन , निर्धारणा
अब हमेमिटना है
खोना है
तुझमे ही समाहित होना है
अब हमे "आम आदमी " होना है.....