सुर्ख और नारंगी टेडीओं से परे एक साधारण सी दुनिया होती है | जिसमें
एक परिवार होता है, कुछ नकचढ़े रिश्तेदार होते हैं | कुछ प्यार करने वाले असली कुछ जलने
वाले नकली दोस्त होते हैं | कहीं पंसारी की तो कहीं पर किताबों की दुकान होती है |
अख़बार, दूध, किराया, बिजली बिल का हिसाब होता हैं | आजकल तो मोबाइल फोन में कई कई जहाँ बसते हैं | एक घर, जो रोज की
जगह अब कभी कभी याद आता है| एक ये दूसरा घर चाहे अनचाहे जिसे याद रखना ही पड़ता है | इन सब के बीच
तुम्हारा फोन न आना भी याद रहता है | टुकड़ों में कुछ चिंताएं आस पास बिखरी होती हैं
| ख़राब हो चुका पंखा मुह चिड़ा रहा होता है | तभी लैपटॉप का एंटीवायरस भी याद आता है, कोई बात
नही कल नोवेल्टी का एक चक्कर लगा लेंगे | घर से लाये हुए आटे पर जब चीटियाँ चढ़ जाएँ तो गुस्सा माउंट एवेरेस्ट
से भी ऊँचा जाता है | पेट में दर्द है पर इधर कुकर भी मांजना हैं और उधर फेसबुक पर
नमो टी वाला अपडेट भी करना है | मकान मालकिन
को दोस्त को कमरा दिलवाने के लिए पटाना हैं | कल सुबह होमवर्क करके कोचिंग जाना है
| इधर दवे सर का तिरछा चश्मा है और उधर
ऋचा मैम की इन्फीरियरिटी काम्प्लेक्स देने वाली स्माइल | उधर साथमे बैठने वाली सखी
पर पड़ोस वाले भईया का दिल आया है, हाय! उसे या खुद को किसी एक को भईया से बचाना है
| सुभाष चौक अब खिड़की से उतना मजेदार नही दिखता |किताबों का लालच रोक न पाने के
कारण खजुरी बाज़ार में अब घुसती ही नही | मरने
से पहले हजार किताबो की लिस्ट में से कम से कम आधी तो पढ़ ही लेनी है | रीगल पर
लाइब्रेरी बरामद की है अपने सामाजिक ज्ञान से, एक चक्कर उधर भी जाना है | सारे टेडी
झूठे होते हैं, लाल या नारंगी, कुछ फरक नही पड़ता की वो किस रंग के हैं या उनके हाथ
में जो दिल है उस पर क्या लिखा है | कुछ नासमझ भी होते हैं | टेडीयों के दिल बाहर
होते हैं और वो सबसे एक ही तरह की बाते करते
है | असली दुनिया में जिंदगी रैखिक वर्तुलों पर चलती हैं | जहाँ कई हिसाब, कई जवाबदारियाँ
हैं और थोड़ी मनमानियाँ हैं | छोडो , हटाओ! ए आशी एक पेन किलर दे यार....................................................