Monday 26 May 2014

दूसरी दुनिया

सुर्ख और नारंगी टेडीओं से परे एक साधारण सी दुनिया होती है | जिसमें एक परिवार होता है, कुछ नकचढ़े रिश्तेदार होते हैं | कुछ प्यार करने वाले असली कुछ जलने वाले नकली दोस्त होते हैं | कहीं पंसारी की तो कहीं पर किताबों की दुकान होती है | अख़बार, दूध, किराया, बिजली बिल का हिसाब होता हैं | आजकल तो मोबाइल  फोन में कई कई जहाँ बसते हैं | एक घर, जो रोज की जगह अब कभी कभी याद आता है| एक ये दूसरा घर चाहे  अनचाहे जिसे याद रखना ही पड़ता है | इन सब के बीच तुम्हारा फोन न आना भी याद रहता है | टुकड़ों में कुछ चिंताएं आस पास बिखरी होती हैं | ख़राब हो चुका पंखा मुह चिड़ा रहा होता है |  तभी लैपटॉप का एंटीवायरस भी याद आता है, कोई बात नही कल नोवेल्टी का एक चक्कर लगा लेंगे | घर से लाये हुए आटे  पर जब चीटियाँ चढ़ जाएँ तो गुस्सा माउंट एवेरेस्ट से भी ऊँचा जाता है | पेट में दर्द है पर इधर कुकर भी मांजना हैं और उधर फेसबुक पर नमो टी  वाला अपडेट भी करना है | मकान मालकिन को दोस्त को कमरा दिलवाने के लिए पटाना हैं | कल सुबह होमवर्क करके कोचिंग जाना है | इधर दवे सर का  तिरछा चश्मा है और उधर ऋचा मैम की इन्फीरियरिटी काम्प्लेक्स देने वाली स्माइल | उधर साथमे बैठने वाली सखी पर पड़ोस वाले भईया का दिल आया है, हाय! उसे या खुद को किसी एक को भईया से बचाना है | सुभाष चौक अब खिड़की से उतना मजेदार नही दिखता |किताबों का लालच रोक न पाने के कारण खजुरी बाज़ार में अब घुसती ही नही | मरने से पहले हजार किताबो की लिस्ट में से कम से कम आधी तो पढ़ ही लेनी है | रीगल पर लाइब्रेरी बरामद की है अपने सामाजिक ज्ञान से, एक चक्कर उधर भी जाना है | सारे टेडी झूठे होते हैं, लाल या नारंगी, कुछ फरक नही पड़ता की वो किस रंग के हैं या उनके हाथ में जो दिल है उस पर क्या लिखा है | कुछ नासमझ भी होते हैं | टेडीयों के दिल बाहर होते हैं और वो सबसे एक ही  तरह की बाते करते है | असली दुनिया में जिंदगी रैखिक वर्तुलों पर चलती हैं | जहाँ कई हिसाब, कई जवाबदारियाँ हैं और थोड़ी मनमानियाँ हैं | छोडो , हटाओ! ए आशी एक पेन किलर  दे यार....................................................