तैरती रहती हूँ
नक्शों पर
एक से दूसरे शहर
बनाती हूँ समय के निशान
ताकि लगा सकूं उससे रेस
चित्रकूट से लेकर रणथम्भौर
तक
अपनी सड़कें खींच दी हैं
मैंने
डोंगरी से लेकर मलयालम तक
समझ लेना
चाहती हूँ कुछ बारीक़ शब्द
क्योंकि जब मैं वहाँ होउंगी
नक्शा थोड़ी न साथ
ले जा सकती हूँ हर बार