Saturday 30 August 2014

तैयारी

तैरती रहती हूँ
नक्शों पर
एक से दूसरे शहर
बनाती हूँ समय के निशान
ताकि लगा सकूं उससे रेस
चित्रकूट से लेकर रणथम्भौर तक
अपनी सड़कें खींच दी हैं मैंने 
डोंगरी से लेकर मलयालम तक समझ लेना
चाहती हूँ कुछ बारीक़ शब्द
क्योंकि जब मैं वहाँ  होउंगी
नक्शा  थोड़ी न साथ  ले जा सकती हूँ हर बार 


Sunday 24 August 2014

बातें...

एक पागल सी लड़की उँगलियों में तीलियाँ दबाये घूमती है 
दिल का अरमान सिगरेट की मानिंद हौले हौले सुलगता हुआ ,
जहरीला सा धुंआ छोड़ता है उसके चेहरे के आस पास.....
हर बार बिखरी हुई जुल्फों के बीच चमकती है उसकी 
आँखों में नफरत .... हा हा हा... चौंक गये क्या?
हाँ चमकीली सी नफरत ....ताकीद मुहब्बतों की, भूलने के बाद...

चुप रहना तुम, किसी से न कहना कि उसने तुम्हे बता रखा है कि 
‘जल्दी ही मैं अपनी दुनिया में आग लगाने वाली हूँ
बस कुछ जरूरी सामान समेटने के लिए रुकी हूँ ‘
उसके कहने पे मत जाना, ये सब बहाने हैं 
किसी भी पल फर्र्र्रर करती हुई एक तीली वो उछाल सकती है
धीरे धीरे एक कोने से जलना शुरू होगी ये दुनिया 
और सुलगते , भभकते देखना कितनी सरलता से नष्ट होगी ये सृष्टि 

.....और उसके बाद राते भी उजली हुआ करेंगी 
फिर सबसे पहले बुझा देना चाँद को, कोई जरुरत नही रहेगी इसकी 
दिन रात का फर्क मिट जाने से रातरानियाँ जी उठेंगी फिर 
रास्तो को समेटकर ,गलीचो और गद्दों वाली पेटी में डाल देना 
फिर तुम कभी न सोना ,कही सपनो में नई दुनिया न बसा बैठो 
नही फिर एक तीली का खर्चा बढ़ा दोगे 

............और हर रात गुलमोहर की शाखों से बाते करना

Saturday 23 August 2014

शिकायत है ?

मुझे नदी के बहने से शिकायत है
मुझे लड़कियों के सिमटने से शिकायत है
मुझे बाज़ार के शोर से शिकायत है
मुझे अन्दर के सन्नाटे से शिकायत है
मुझे शिकायत है  रेत क्यूँ नही सोखती पानी
मुझे शिकायत है कटे पेड़ों के फिर उग जाने से
हाँ, हर बात से नाराज हूँ मैं

मुझे अखबारी सुर्ख़ियों से  शिकायत है
मुझे तेज आवाज रेडियो से  शिकायत है
मुझे बंद दरवाजों से शिकायत है
मुझे  खुली खिडकियों पर ऐतराज  है
हाँ, हर बात से नाराज हूँ मैं
तुम बोलते हो और मैं चुप हूँ, मुझे शिकायत है