Wednesday 17 June 2015

तुम २

१...

तेरा ख्याल भी 
तुझसा निकला
बस कभी कभी 
सताने को आता है

२..

टुकड़ों में सही
याद करते हैं तुझे

३..

उधार का इश्क़ है
सूद चुकता नही
मूल पे बात 
आती नही 

४..

मेरी दिल की हरारत 
के लिए
तेरी इक झलक 
जैसे
आधी ‪#‎पेरासिटामोल‬ wink emoticon heart emoticon

खोज

कभी सच में 
कभी भरम में 
रोज़ होते हैं 
एक यात्रा पर 
खुली आँखो से 
कभी यूँ ही
गुनगुनाते या मुसकुराते हुए
अचानक
एक जोड़ी नज़र
आइने सा एहसास दे जाती है
और
बरबस ही
याद आ जाता है कि
हम तो मोती ढूँढने निकले थे...

नशे

दिल जब लानतें भेजता है
मुश्किल होता है उस वक़्त तुम्हे भूल पाना 
ऐसे ही की किसी निकम्मे से पल में 
तो बोतलें साथ निभाती हैं
शराब कोई हो, नशा कोई हो
मुश्किल होता है कि टूट जाये
दिमाग का कनेक्शन दिल से
थोड़ी उथल पुथल के बाद हर बार
हार मान लेता है दिमाग
और फिर नींद भी नही आती ...........

याद तुम्हारी

कई बार
खुशबुएँ हलकान किये होती हैं मुझे
बाएं कान के नीचे
उस पनीले रंग के चुम्बन की
तब मैं छिप जाना चाहती हूँ
तुम्हारे बाजुओं में
अपने सपनों की कसीदाकारी करने को..!

क्षणिकाएं 4

१...

अगले विश्वयुद्ध से पहले
एक बार और तुमसे प्रेम कर लूँ ।

२...

मुझे डर है रात के चोरी हो जाने का 
और इसलिए मैं पहरे पर हूँ!

३...

तेरे आँसू चख देखे मैने चुपके से
सब खारे हैं मेरी मानिंद

जिंदगी में यूँ ही ...

१...

लैपटॉप के एंटीवायरस से लेकर
अधूरी पड़ी स्क्रिप्ट तक
अधपके चावलों से लेकर
रूठी हुई सहेली तक
सुबह से शाम तक
शाम से सुबह तक
हर बार कहीं और हूँ मैं
कोई और हूँ मैं ।



२...

बार बार बजती घंटियों से उकताकर
एक ही बार में
एक ही वार में 
राख में बदल दिया जाता है 
वो परिन्दा 
पर वो अमरपक्षी नहीं छोड़ता
अपने जीने की जिद
इस बार
वो मुझसे जिंदगी उधार ले गया ।



३...

दिन अच्छा है आज का 
वजह है मेरे पास 
तमाम किस्सों के साथ 
मैं बेझिझक याद कर सकती हूँ ....तुम्हें आज

*** वो और वो ***

रात के सिहरते सन्नाटों में , 
अँधेरे के किसी छोर पर नजर टिकाकर 
वो कह बैठती है, मैं प्यार करना चाहती हूँ तुमसे
इस तरह के आरम्भ से
अचकचाया सा वो जैसे उठ बैठता है अपने स्वरों में भी
और कुछ न पाकर बस इतना ही कह पाता है कि, हाँ मैं भी
जब उसकी उलझती साँसों की आवाजें
हैडफ़ोन पर तूफ़ान सा प्रभाव बनाती हैं,
और सरसराहट के साथ पहुँचती हैं उस पार
उसके कानो को गर्म होने देता है वो भी
और चुप्पियाँ बातें करती है सारी रात, लगभग बुदबुदाते हुए

निर्धारण

अक्षर सब काले हैं 
सदियों से
कितने भी लिखे जाएँ 
नही कम होती
खीझ,गुस्सा,बेचैनी
लिखने वाले मन की
इन्हें सुर्ख होना चाहिए था
ताजे खून के जैसा
सुकून न सही
घिन तो आ जाती

यूँ ही ...

१...

इक क़त्ल है
दो किस्से हैं 
आधा इश्क है 
बिना नींद वाली राते हैं 
कुछ फिजूल सी बाते हैं 
उधार की कुछ किश्ते हैं
उसकी डायरी में हिसाब दर्ज है


२...

अक्षर सब काले हैं 
सदियों से
कितने भी लिखे जाएँ 
नही कम होती
खीझ,गुस्सा,बेचैनी
लिखने वाले मन की
इन्हें सुर्ख होना चाहिए था
ताजे खून के जैसा
सुकून न सही
घिन तो आ जाती

अवसर

जिससे तुनक कर
फोन पटक
अखबार उठा लिया था मैंने
वो अब गार्ड ड्यूटी पर है
और तब मैं खबरे पढ़ रही हूँ
मैंने पढ़ा
युद्ध के हैं आसार, फौजें रहें तैयार
पढ़ कर, सहमती हूँ ,हर बार
हडबडाकर कर
फिर वही नम्बर डायल करती हूँ
और वो सिर्फ हंसता है
मेरी बाते सुनकर
पगली हो तुम कहते हुए...
सुनो, कहीं ये अनचाही घडी
करीब तो नहीं ?
वो फिर हंसता है और
दोहरा हुआ जाता है बार बार
आह! कितना मुश्किल है
युद्ध को तत्पर एक हँसते हुए
सैनिक की प्रेमिका होना
और फिर मैं
अख़बार के पन्नो पर
तलाशने लगती हूँ
युद्ध के पहले प्रेम का एक अवसर।। heart emoticon

क्षणिकाएं ३

१...

जागती आँखों के सपने... जैसे मालाबार तट पर आती जाती लहरें 
बेचैन समंदर के लिए भी नींद एक गैरजरूरी शय है, तुम्हारी मानिंद ...

२...

वक़्त पड़ा है, काम आये कोई
चाहे तो, नींद उधार ले जाए कोई...

३...

चाँद की दो फांक वाली, बालियाँ मांगी थी मैंने
वो ऐसा कंजूस था कि गुस्सा दिला के बढ़ लिया!

४...

एक तीली मेरे पास कम है...
इसीलिए ये दुनिया कायम है...

५...

जाओ
एक बार फिर 
चले जाओ
कम से कम
मुझे 
मेरी कविताओं में तो
अकेला छोड़ दो!!!


५..

"पहला" मैदान पर उतरता बस है। smile emoticon
"दूसरा" आये तो खेला शुरू करता है। grin emoticon
"तीसरा" अक्सर खेल बिगड़ता है। unsure emoticon
"चौथा" खेल ख़त्म होने के बाद आता है। cry emoticon

फुर्सत में

एक दिन जब कोई काम नहीं होता... बेवजह दो आंसू रोने की फुर्सत मिल जाती है। अरे अब भला हंसने का कोई कारण हुआ है कभी... न ही मिली है अब तक रोने की वजह। लिखा हुआ कुछ दिल में हैं ... कुछ आँखों में जो लिखने से चूक गया। रोशनाई बहती जरुर है... पर प्यास नहीं मिटा पाती। हरे कागजों के लिए , सफ़ेद कागजो को लिए बस खर्च होती जाती है। एक मशरूफ रात एक आरामतलब दिन से कहीं अच्छी है। बातो के हिज्जे नमकदार हैं । किस्से खर्च हो चुके हैं। कोई सुन ले तो बहुत कुछ कहना है मुझे...

अफवाहें

उस पार, वो बड़ी देर से सोच में बैठे हैं । किसी ने उनसे कह दिया है कि खत्म होने वाली हैं औरतें इस जहाँ से। वो सहमे से बैठे हैं उन्होंने तीन क़त्ल करवाई हैं बीते 21 महीनों में। धंधेबाज हैं, नया बिजनेस आईडिया ढूंढ लेते हैं इसमें भी। कालाबाजारी कर लो... थोक में ब्याह लो अधिक से अधिक। बाद में मोलभाव करके देख लेंगे।
इस पार कुछ और ही चल रहा है। उन्हें नहीं मालूम औरतें बड़ी जीवट हैं। अलग ही तरह का जंतु हैं । कभी न मरने वाली ... रक्ताभ चट्टानों की ईजाद। कोई नींद का फसाद बता उन्हें। वो ख्वाब में हैं और औरते रक्त में सनी सांस लेती हुई, अपनी पिछली पिधिनकी कोख में; कभी न रुकने वाली धडकनों के साथ।
ये फ़कत एक अफ़वाह है कि औरतों ने ये ग्रह छोड़ने का निश्चय किया है। वो कभी ख़त्म होने वाली नहीं हैं।

क्षणिकाएं २

१...

मैंने सौ किताबें पढ़ीं, एक से बढकर एक

माँ ने बस इक बात कही, रहना नेक इरादे टेक


२...


उम्मीद थी तुम पत्थर हो,

अफ़सोस है तुम रेत निकली।

३...

समन्दर कितना बेसुरा है... चिंघाड़ता है, जैसे मौत रूबरू हो...
जाने कैसे कवि हो तुम... डर के गीत भी लिख देते हो।


४...

तूने भी लिख दिया हमें 
हम भी तुझे किस्सों में छोड़ आये


५...

धरती हो गयी हूँ ...
चकराई सी घूमती हूँ... 
अपने ही चारों ओर... 
थकती हूँ... थमती नहीं।

one lilners

1.मुस्कुराते हुए चेहरे सबसे ज्यादा झूठ बोलते हैं।
2. आत्ममुग्धा... अग्निधर्मा... शेष भ्रान्ति... मृदा मैं!!!

तुम

सुबह की रौशनी में तुम्हारी रोशन आवाज सुनना। सुर्ख सुर्ख़ियों में तुम्हारी कवितायें ढूंढना। चबा जाना तुम्हारी बातों को सुबह के नाश्ते में। खिलखिलाहटें उबालकर छानकर ढँक देना। इंतजार तुम्हारी दोपहर का जो चार बजे हुआ करती है। चावलों को सब्जी की कलछी से निकाल देखना सफ़ेद और पीले चावलों में अंतर। सुना है रजामंदियाँ केसरिया रंग की होती हैं । बातें सब सूखने को छत पर डालकर भूल आते हो रोज... समेटती दिखती है वो नाजुक हाथो से। चूड़ियों काशिकायतों में खनखनाने की आदत का छूट जाना । कुछ भी खाने जैसी भूख को हजम करते हुए घंटो तुम्हें निहारने की ख्वाहिशों को तह करना। तुम्हारे जाने से तुम्हारे आने के बीच सौ बार तुम्हे याद करना। किश्तें इश्क़ की सब राजी होकर खड़ी हैं बालकनी में। जूते पहन लो और चलो तुम भी । जरुरी है हर सुबह के पहले रात का आना। इक तुम ही नहीं आते... ये शिकायते करना और पिछली होली का वादा भी भूल जाना।

दिन भर

तमाम जिम्मेदारियां और जरूरते पूरी करते
बिखरे बर्तनों और कपड़ों के ढेर से उखडकर
आधे जिगर की खुली बाहें ठुकराकर
चढ़ते सूरज के साथ, चढ़ती हूँ रफ़्तार के परों पर
छूटकर मशक्कतों के पंजे से, भागती दौड़ती
हर शाम जब लौटती हूँ अस्तव्यस्त घोसले में
मेरे जिगर का आधा हिस्सा सो चुका होता है
जी नहीं भरता रात भर निहारकर भी, सोते चाँद को
हाँ मुश्किल है, मुश्किलों से, एक माँ होना
हाँ मुश्किल है, मुश्किलों में, एक माँ होना
©अंजलि चैतन्य
04/02/15

क्षणिकाएं

१...

घास की अनपढ़ी किताबें
ओस की बूंदों से सीली हुई
आते फागुन के साथ
सुनहरी होने लगती थी
और फिर समझ ये कहती थी
बसंत आया, बस अंत आया

२...

वो आतुर हैं किसी और राह मुड़ने को
वो चाहते हैं ऊबड़ खाबड़ रास्तो पर चलना
वो कहते हैं यहाँ बहुत से पाँव है उभरे हुए
वो सोचते हैं वो नहीं गये तो और कौन
वो पहिये जो लीक पर नही चलते


३...


प्यार का किया जाना
या प्यार का हो जाना 
कुछ यूं है, जैसे कब्रें खोद लेना खुद की ही
और पाँव लटकाकर बैठ जाना


४...

प्यार का किया जाना
या प्यार का हो जाना 
कुछ यूं है, जैसे कब्रें खोद लेना खुद की ही
और पाँव लटकाकर बैठ जाना


५...

सपनों में आया
लाल फूलों वाला... सुनहरी गोटे वाला...
बकरियों के पीछे भागती
एक देहातन तितली का फ्रॉक!!!

फागुन में

हर नई चोट पर
और थोडा मलाल कर लेते
काश कि अब भी हम
रो रोकर बच्चों सा हाल कर लेते
चाँद तारे सहेज गुल्लक में
खरचा सूरज का उठाए फिरते
बाद हर सुबह के
खुद को कंगाल कर लेते
थामें बैठे हैं
खुद को खुद की बाहों में
तुम जो होते
हम भी कमाल कर लेते
भींच टेसू को अपनी मुट्ठी में
मलते सबके गालों पर
अब के फागुन
खुद को गुलाल कर लेते
©अंजलि चैतन्य
07-02-15

यहाँ से वहां

ये जगह, जहाँ मैं हूँ, मुझे बहुत पसंद है
वो जगह, जहाँ मुझे भेजा गया था, नापसंद थी
बालों में लगाने के फूल, दिन में पढने की जगह
कविताओं के विषय, रात में काम करने का ठिकाना
हमेशा अपनी पसंद से चुनती आई हूँ मैं
इस ठिकाने को लिखना है मुझे, या सजाना है बालों में
अब तक तय नहीं कर पाई थी मैं
कुछ भी करना है इक शुक्रीय अदा करने के लिए
बस एक सफ़र, जो नापसंद है
उस सफ़र को गंदे जूते पहन कर ही पूरा कर लेना है

कपल कथा

ट्रेन का एक लम्बा सफ़र ढेर सारे नमूनों की बख्शीश दे देता है| मैं लोगो को नहीं पहचान पाती इसलिए हमेशा इन चेहरों को पढने की कोशिश करती हूँ| उनके बारे में अलग अलग तरह के अंदाजे लगाना मेरा फेवरेट टाइमपास है| इस बार के सफ़र में मैंने जोड़ो पर ध्यान देना शुरू किया और ये जानने की कोशिश की कितने तरह के जोड़े हमारे आस पास पाए जाते हैं तो चलिए शुरू करते हैं,

एक होता है साइलेंट कपल... ये जोड़ा ज्यादातर वक़्त चुप-चुप सा रहता है| सामने कौन है, क्या है इस बात से इन्हें कोई मतलब नहीं होता | बीच बीच में ये एक दूसरे की आँखों में झांककर पूछ लेते हैं... “कुछ चाहिए तो नहीं ?” कई बार इनकी चुप्पी से आपको कोफ़्त होने लगती हैं| टाइम का इन्हें विशेष ध्यान होता है| वक़्त पर खाना और सोना शायद ये घर पर भी करते हों, मगर ट्रेन में तो करते ही हैं | खाने के बाद इनमे से कोई एक चुपचाप बिस्तर डालता है, और अगला उसे टुकुर टुकुर देखता है | ख़ामोशी का छोटा सीक्वल देखना आपको मजा भी दे सकता है और बोर भी का सकता है| थोड़ी देर बाद ये कम्बल तानकर अपनी उस दिन की कहानी को विराम दे डालते हैं |

एक होता है डिस्कसन कपल... ये जोड़ा किसी भी बात पर डिस्कसन कर सकता है| बार बार चेन खींचे जाने पर, अगले के सामान सही ढंग से न रखने पर, टिफिन में लाये हुए खाने पर... से लेकर आप को इतना प्रचंड बहुमत क्यूँ मिला| इनके डिस्कसन यहाँ से शुरू होकर कहाँ तक जा सकता है, आप अंदाजा नहीं लगा सकते| आप चिंतित बिलकुल न हों अगर ये आपके ड्रेसिंग सेंस पर लम्बा चौड़ा वार्तालाप भी कर डालें| बेहतर है, गप्पे हांकने का शौक यहाँ पर आप पूरा कर सकते है|

आलोचना / चिंता करने वाला जोड़ा: ये जोड़ा भी लगभग डिस्कसन कपल की ही तरह का होते हैं| ये दार्शनिक किस्म के जंतु होते हैं| आपकी भी राय होगी कि इन्हें तुरंत हिमालय की ओर कूच करना चाहिए, मगर गलती से ये इंडियन रेलवे का टिकेट ले बैठे हैं, और आपको इन्हें झेलना है | बढ़ता किराया, गन्दी राजनीति, बालिका उत्थान/पतन, आतंकी हमला ... सब पर समग्र चिंतन सामग्री इनके पास होती है| इन सबसे अगर उनका ध्यान हटाने में आप किसी हद तक सफल हो जाते है, तो ये अपनी बेटी की शादी या बेटे की आवारगर्दी का रोना शुरू कर देते हैं| ये प्रायः 35 से 55 आयुवर्ग के जोड़े होते हैं इसलिए इनसे आप किसी तरह से शिकायत नहीं कर सकते, क्यूँ ये मत पूछियेगा| ऐसे वक़्त में आपका बंगलौर वाला बॉयफ्रेंड ही काम आता है।

एक प्रकार पूछताछ कपल का भी होता है| ये आपके घर-ठिकाने से लेकर, गरलफ्रेंड/बूआयफ्रेंड का नाम, पिछला इन्क्रीमेंट, आज सुबह बराबर पेट खुला या नहीं ये भी पूछ सकते हैं| इनको पहचानने के लिए जरुरी नहीं कि आप अपनी छठी इन्द्रिय को कष्ट दें | दो चार प्रश्नों के बाद आप इनके मानसिक स्तर का अंदाजा लगा सकते हैं, और इससे पहले कि आपके अंतर्वस्त्रों का सन्दर्भ उठे इनसे निश्चित दूरी बना लें|
एक होता है प्यार / परवाह वाला जोड़ा | ये जोड़ा एक दूसरे में डूबा रहता है| ये या तो 20 से 30 की लाइन में ... या फिर 60 से 70 की सीरिज के मानवाकार जंतु हो सकते हैं| इन्हें देखकर आपकी सुलग सकती है, या फिर आप शादी करने को भी ललचा सकते हैं| इसलिए देखने में ये जोड़ा आपके लिए जितना सुविधाजनक और आनंददायी होता है, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है| ये आपके भेजे में खतरनाक तरह के केमिकल लोचे की शुरुआत कर सकते हैं | ईश्वर से दुआ करिए की इनसे आपका सामना न हो, तो ही अच्छा|

अब जब प्यार वाला जोड़ा होगा तो कोई न कोई झगडे वाला जोड़ा भी होगा| सरकार से लेकर रेलवे तक, सानिया मिर्ज़ा से लेकर गोपी बहु तक, और यहाँ तक की आपने जिससे फोन पर ऊँचे स्वरों में बात की, उसकी भी| मगर इसका प्रिय शगल रिश्तेदारों या दोस्तों शिकायत करना है| मादा हिस्सा जहाँ अपनी सास और ननद से त्रस्त विभाग होता है , वहीँ नर हिस्सा पत्नी के मायके वालो को खाल खींचने में भी कहीं से कम नहीं कम पड़ता| इन सारी कोशिशों के बिच इनकी कितनी निजी बातें पूरी बोगी तक पहुच जाती है| इस बात से इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है|

...और भी कई प्रकार हैं, वो फिर कभी| जोड़ा कोई भी हो उसका उद्देश्य आपकी यात्रा को बेतरह यादगार बनाना होता है| समझ रहे हैं आप! 

जीती रहो मर्लिन

प्यारी मर्लिन! तुम मर गयी,
एक अरसा पहले
मुझे अफ़सोस होना चाहिए इस बात का
मगर अफ़सोस कि मुझे अफ़सोस नहीं है...
क्यूंकि तुम... मर्लिन!!!
मर्लिन थी और मर्लिन ही रही
कुछ और होने की जरुरत नहीं पड़ी तुम्हे
कभी त्वचा की पहली परत से लेकर
भीतर कूट कर भरा हुआ हुनर
सब इस दुनिया ने देखा
जो नहीं देख पाया, उसका अनदेखा रह जाना
अपने आप में रहस्य है...
मर्लिन!
तुम सबकी रहीं, हर कोई तुम्हारा
हर किसी का होकर भी किसी का न रहना
तुमने पिता बदले, प्रेमी भी
शायद संताने भी बदली हो
तुम्हारे लिए कुछ असंभव नहीं
कोई चाहे तो तुमसे सीख ले
सीख ले कोई तुमसे कि खुबसूरत होना क्या है
सीख ले की वक़्त से निकल कर
कैलेन्डर पर कैसे ढला जाता है
सीख ले प्यास को ज़िंदा रखा जाता है
सीखे... कि एक ही वक़्त कैसे जी जाती है
एक जिंदगी परदे पर और दस असल में
सीख ले कोई तुमसे... बदन से सारे कपड़े उतार कर भी
कैसे ढकी जाती हैं आत्मा की किरचे
मर्लिन!
तुम ही बन सकती थी
दुनिया की पहली औरत
मुझे गर्व है, गर्व है मुझे तुम पर कि
तुमने खुद ही खुद के लिए मौत चुने
शायद इकलौता यही फैसला तुम्हारा अपना था
अपने लिए मरना तय कर लेने से बड़ी बात क्या होगी,
जबकि शौक था तुम्हे बूढी हो जाने का,
झुर्रियों का, भूरे बालो और कमजोर नजर का
तुम... एक ‘मिसफिट’ औरत... ज़िन्दगी में,
बूढी होने का इंतजार तक न कर सकी
एक औरत होकर तुम सौ बार मर सकती थी
मगर तुम सिर्फ एक बार मरी
................और एक ही बार मरकर, ज़िंदा हो हमेशा... हमेशा के लिए!!!

साँझ लौटकर ...

एक मोटी परत फीकी सी हंसी की
कुछ ओके, कुछ आलराईट...
घिसकर उंगली के पोरों से
छीटे पानी के देती हूँ
एक खीझ पुरानी, एक तजा गुस्सा
कल की जिद और आज का किस्सा
हर रात भिगोकर चेहरे को
जाने क्या घुलने देती हूँ
एक कच्चा सा यकीन
एक टूटा हुआ अधूरा वादा
बहुत कुछ कहा-अनकहा
ये सब मिलाकर
हर रात अपने चेहरे से
कितने मुलम्मे धोती हूँ मैं

उकताहट

हर साल की तरह इस साल भी
ढेर सारे विश्लेषणों से उकताकर 
प्रेम नदी की ओर के वीराने देखने निकल गया है
मौसम भी ठहरने की वाजिब वजह न पाकर 
सूरतें बदल बैठा है
बदली हुई सूरतें, उघड़े हुए रंग देखकर
एक अजीब सी घुटन होने लगी है
किसी पास बीते बरस का फागुन हो तो
थोड़ा मुझे भी दे दो
...और
तुम आने वाले थे न!
क्या हुआ?

सबसे आसन.... सबसे मुश्किल

लिखना आसान है
महसूस करने के दावे करना भी
बधाईयाँ देना तो सबसे ज्यादा
सड़क पर निहारना भी कोई मुश्किल नहीं
इन सबके बीच
अगर कुछ मुश्किल है
तो एक औरत होना
दुनिया का सबसे कठिन काम है
एक औरत का पहले तो पैदा हो जाना
फिर औरत बने रहने की कोशिश करना
न न न... इंसान होने की तो बात ही मत करो।

नाउम्मीदी

काश! मैं लड़की होने की बजाय कोई पेड़ होती
जंगली पेड़, उजाड़, जिसमे कोई फल नहीं लगता
पत्ते भी नहीं
तब मैं उम्मीदों से देखती इन्सान को 
और खुश हो सकती कि
अच्छा है, मैं एक पेड़ हूँ
मुझे ताउम्र इस बात का अफसोस रहेगा
कि मैं एक लड़की हूँ
पेड़ नहीं
(.... नही! तुम सा हो जाना मैंने कभी चाहा ही नहीं।
मैं लड़की ही ठीक हूँ
या फिर एक पेड़ ही अच्छी। )

चुप रहना!

बार बार चिल्लाने से कुछ नहीं होगा... 
अब उखाड़कर बहा दी जानी चाहिए कोखें... 
और रोक दी जानी चाहिए वंशों की नदियाँ... 
सपाट जमीन में बदल दो औरतों को....
.....फिर नवरातों में मिट्टी लीपकर उगा लिया करना जवारे.... 
आखिर पूजना तो नहीं छोड़ोगे न तुम..?
.......नस्लों को जहर बुझे प्रति संवेदना के टीके लगवा दो.....
.......और हर पिता को शैतान करार दे दो...
क्यों कि मादा देह की उत्पत्ति में सहभागी था वो....
सजा के तौर पर बना दो उसे कोठे का तबलची
....हाय मैं इतना बोलती क्यों हूँ
.......क्यों न मुझे एक प्याला H2SO4 पिला दो!

खलल

रातें
कभी खींचकर
इतनी लम्बी हो जाती हैं
कि 
दिन के लिए
समय ही नहीं बचता
और तब
मैं
अपनी आवाज़
को लौटा लाती हूँ
कि
उसकी नींद में
खलल नहीं पड़ना चाहिए
हो सकता है
कि वो कब्र में हो
और
करवट लेने की मनाही हो
हो सकता है कि
वो सब्र में हो
और
मुस्कुराने की ड्यूटी
पर मुस्तैद हो
ऐसे में
उसे
क्यों
उलझन में डालना...