कभी सच में
कभी भरम में
रोज़ होते हैं
एक यात्रा पर
खुली आँखो से
कभी यूँ ही
गुनगुनाते या मुसकुराते हुए
अचानक
एक जोड़ी नज़र
आइने सा एहसास दे जाती है
और
बरबस ही
याद आ जाता है कि
हम तो मोती ढूँढने निकले थे...
कभी भरम में
रोज़ होते हैं
एक यात्रा पर
खुली आँखो से
कभी यूँ ही
गुनगुनाते या मुसकुराते हुए
अचानक
एक जोड़ी नज़र
आइने सा एहसास दे जाती है
और
बरबस ही
याद आ जाता है कि
हम तो मोती ढूँढने निकले थे...
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