Tuesday 7 July 2015

स्त्री ने रचा अपना संसार

जाने कब से चुप्पियाँ आस पास ही टहल रही थी. कोई जानता ही नहीं था और अगरजानता भी था तो समझने के लिए तैयार नहीं था. इस ‘गोले’ की आधीआबादी के पासकहने के लिए क्या है? सुनाने के लिए क्या है? बजाय इन सब के, ऊपर के दर्जे परखड़े होकर वो सिर्फ झांकते रहे.उन्हें सिर्फ देखने के में रूचि थी जबकिस्त्रियाँ सुनी जाना चाहती थीं, हमेशा से. किसी कहानी की तरह. हालाँकि वोकिस्सों में हमेशा रहीं मगर एक किरदार की तरह, क्यूंकि कहानी तो हमेशा नायकोंकी हुआ करती हैं.

उस दिन सबसे ऊँची पायदान के पुरुषों के चेहरे का रंग उड़ गया. जब उसने कहा उसनेकलम उठा ली हैं. और घोषणा कर दीकी वो बस एक किरदार नहीं है. जो कहानी उसकीनहीं वो उस कहानी का हिस्सा भी नहीं. इसलिए अब खुद कहानीकार है, अपनी कथा केसाथ और उसकी नायिका भी. 

उसने आह्वान किया शब्दों का, कलम में शब्द उतरे औरउसने गढ़ा अपना भाव संसार.परम्पराएँ टूटी तो पगडंडियाँ बनीं. पहले तो कागजों पर आज़ादीपाई. उसने लिखादोयम शिक्षा से छुटकारा चाहिए. उसने लिखा घरेलू डर उसेडराते हैं. उसने लिखाजलन और प्रेम, जुल्म और बदला यहाँ तक की अपराध और सजा भी. उसके लिखते रहने काअसर हुआ और मंच पर बराबरी से बैठने की हैसियत पाई उसने. दो सौ साल हुए जबस्त्री ने स्त्री को लिखना शुरू किया था बर्नेट सिस्टर्सके रूप में और येयात्रा जारी है, तब तक जब तक आपये लेख पढ़ रहे हैं, और उसके बादभी. 

स्त्रीलिखने से चुकती नहीं है, इसीलिए स्त्री लिखने से चूकतीनहीं हैं.कलछी कलम साथ चलाते हुए अन्याय के खिलाफ अपना गुस्सा भी लिखा, युद्ध कीआशंकाएं भी लिखी और उस गुबार में पनपा प्रेम भी. लिखना जरुरी है, क्यूंकिकहना जरुरी है और जरुरी है सुना जाना. फिर भी स्त्री लेखनपर आत्मालाप होने काआरोप है. यह आत्मालाप नहीं है, बस एक जरुरत है. सामयिकी, फंतासी, राजनीती,विज्ञान, इतिहास इन सबके साथ सबसे जरुरी स्त्री का लिखा जाना.



१ जुलाई २०१५ को नई दुनिया, " नायिका" में प्रकाशित ...

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